पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Tuesday, September 7, 2010

गीत 43 : प्रभु, आजि तोमार दक्षिण हात

प्रभु आज छुपाकर मत रखो
अपना दायाँ हाथ।
राखी बाँधने आई हूँ
मैं तुमको हे नाथ।

यदि बाँधूँ तुम्हारे हाथ में
बँध जाऊँ सबके साथ में,
जहाँ कहीं भी कोई भी हो
रह न पाएगा बाकी।

आज बस भेद न रहे
अपने-पराये का,
तुमको बाहर-घर में जैसे
देख पाती एक-सा।

तुमसे विच्छेद के चलते ही
रो-राकर मैं भटकती
हो मिलन क्षणभर का भी
मैं तुम्हें पुकारती।

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