पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Monday, September 6, 2010

गीत 42 : गाये आमार पुलक जागे

मेरे तन में पुलक जगी है,
आँखों में हुई घनघोर-
हृदय में मेरे किसने बाँधी
राखी की रंगीन डोर।

आज इस आकाश के नीचे
जल में, थल में, फूल में, फल में
किस प्रकार हे मनोहरण,
छितराया मेरा मन।

कैसा खेल हुआ है मेरा
आज तुम्हारे संग में।
पाया है क्या खोज-भटककर
सोच न पाऊँ मन में।

आनंद आज कैसे किस ढब से
आँसू छलकाए आँखों में,
मृदु-मधुर बनकर विरह आज
कर गया प्राणों को विभोर।

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