पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Monday, August 30, 2010

गीत 39 : हेथा जे गान गाइते आसा आमार

यहाँ जो गीत गाने आई थी मैं
वह गीत गाया जा न सका-
आज भी सुर-साधना ही हो रही बस
मैं तो चाहूँ गीत गाना।

मुझसे सधता ही नहीं वह सुर
मुझसे उठते नहीं वे बोल,
केवल प्राणों के ही बीच उठी है
गाने की व्याकुलता।
आज भी खिला ही नहीं वह फूल
बस बहती एक-सी हवा।

मैंने देखा नहीं मुख उसका
मैंने सुनी न उसकी वाणी,
केवल पल-पल सुनती उसकी
पैरों की बस ध्वनि।
मेरे द्वार के सामने से ही वह
करता है आना-जाना।

केवल मैं आसन ही रही बिछाती
गुजर गया सारा दिन-
घर में दीप जलाना हुआ नहीं है
कैसे जाए उसे पुकारा।
हूँ उसको पाने की आशा में
हुआ न उससे मिलना।

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