पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Monday, August 23, 2010

गीत 34 : आमार मिलन लागि तुमि

मेरे मिलन के लिए तुम
हो कब से ही आ रहे।
कहाँ रखेंगे ढँककर तुमको
चंद्र-सूर्य तुम्हारे।

कितनी ही बार साँझ-सकारे
तुम्हारी पगचाप सुनाई पड़े।
दूत चुपके से अंतरतर में
गया है मुझको बुलाके।

अरे ओ पथिक, आज तो मेरे
प्राणों में है स्पंदन
रह-रहकर उठती है देखो
हर्ष की सिहरन।

देखो समय आ गया आज,
खत्म हुए सब मेरे काज-
हवा आ रही हे महाराज,
तुम्हारी गंध लेके।

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