पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Monday, August 16, 2010

गीत 30 : एइ तो तोमार प्रेम, ओगो

यही तो तुम्हारा प्रेम, अहो
हृदय-हरण,
यह जो पत्तों पर थिरके प्रकाश
स्वर्ण-वरण।

यह जो मधुर आलस भरे
आकाश में मेघ तिरे,
यह जो हवा देह में करे
अमृत-क्षरण
यही तो तुम्हारा प्रेम, अहो
हृदय-हरण।

प्रभात-प्रकाश धारा में मेरे
नयन डूबे हैं।
अभी सुनकर तुम्हारी प्रेम-वाणी
प्राण जगे हैं।

यही तुम्हारा आनत मुख है,
जिसने चूमे मेरे नयन,
परस किए हैं हृदय ने मेरे
आज तुम्हारे चरण।

2 comments:

  1. प्रिय देवेश भाई,

    किसी भी भाषा की कविता को पढ़ने मजा जो मूल भाषा में उसे अनुवाद रूप में पढ़ने से उतना मजा नहीं आता. लेकिन इस कविता को पढ़कर अच्छा लगा. आपका काम काफी मेहनत का है!

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