पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Saturday, August 14, 2010

गीत 28 : प्रभु, तोमा लागि ऑंखि जागे

प्रभु तुम्हारे लिए हैं अँखियाँ जागीं
नहीं सूझती राह
दिखाओ
जो मन को अच्छा लगे।

धूल में बैठा द्वार पर
भिक्षुक हृदय यह हाय
तुम्हारी करुणा माँगे।
नहीं मिली कृपा
वह चाहूँ,
जो मन को अच्छा लगे।

आज इस संसार में
कितने ही सुख और कामों में
सब निकल गए आगे।
साथी मिला न मुझको
तुम्हें ही चाहूँ,
जो मन को अच्छा लगे।

चारों ओर सुधा सरसे
व्याकुल श्यामल धरती
रो रही अनुराग में
हुए न दर्शन
मिली व्यथा
जो मन को अच्छा लगे।

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