पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Saturday, July 10, 2010

गीत 3 : कतो अजानारे जानाइले तुमि

कितने अनजानों से तुमने कराया परिचय
कितने ही घरों में दिया आश्रय-
दिलों की दूरी घटाई, बनाया बंधु,
परायों को बनाया भाई।

जाने क्या होगा खाए यह चिंता
पुराने घर को जब छोड़कर जाती,
नूतन में तुम हो नित्य पुरातन
यह बात जो मैं भूल जाती।
दिलों की दूरी घटाई, बनाया बंधु,
परायों को बनाया भाई।

जीवन-मरण में, निखिल भुवन में
जब-जहाँ भी तुम मुझे अपनाओगे,
ओ जनम-जनम के मेरे परिचित,
सबसे तुम मुझे मिलाओगे।

तुम्हें जानकर रहे न कोई पर,
नहीं वर्जना और न कोई डर,
रहते तुम जाग्रत सबको मिलाकर-
पाया ऐसा ही तुमको देखा निरंतर।
दिलों की दूरी घटाई, बनाया बंधु,
परायों को बनाया भाई।

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