पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Saturday, July 31, 2010

गीत 24 : जदि तोमार देखा ना पाइ, प्रभु

यदि तुम्हारे दर्शन  पाऊँ, प्रभु,
इस बार के जीवन में
तब तुम्हें मैं पा न सकी
यह बात रहेगी मन में
इसे भुला न पाऊँ, वेदना पाऊँ
सोते हुए भी स्वप्न में।

इस दुनिया के हाट में
मेरे इतने सारे दिन बीते
मेरे हाथों में इतना धन आया
तब भी कुछ पा न सकी मैं
यह बात रहेगी मन में
इसे भुला न पाऊँ, वेदना पाऊँ
सोते हुए भी स्वप्न में।


यदि आलस आ जाए
मैं सड़क पर ही बैठ जाऊँ
यदि धूल में सेज बिछाऊँ यत्न से
किंतु करनी है सारी राह तय
यह बात रहेगी मन में ।
इसे भुला न पाऊँ, वेदना पाऊँ
सोते हुए भी स्वप्न में ।

जितनी आए हँसी,
घर में जितनी बजे वंशी,
अरे ओ, जितना भी आयोजन में सजा लूँ घर
किंतु तुम्हें घर में लाना हुआ नहीं
यह बात रहेगी मन में ।
इसे भुला न पाऊँ, वेदना पाऊँ

सोते हुए भी स्वप्न में ।

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