पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Friday, July 23, 2010

गीत 16 : मेघेरे परे मेघ जमेछे

घन के ऊपर घन घनघोर
करते आ रहे अँधेरा-
बिठा रखा है मुझको क्यों
द्वार के पास अकेला।

व्यस्त दिनों में काम-धाम में
रहती लोगों के संग-साथ में,
आज जो बैठी हूँ मैं यहाँ
लेकर बस तेरी ही आशा
बिठा रखा है मुझको क्यों
द्वार के पास अकेला।

यदि न तुम दर्शन दो
करो मेरी अवहेला,
फिर कैसे कटेगी मेरी
ऐसी बादल-बेला।

दूर तक बिछाए पलक पाँवड़े
देखती बस तुम्हारी ही राह
भटकते रो-रोकर प्राण मेरे
और यह तूफानी हवा।
बिठा रखा है मुझको क्यों
द्वार के पास अकेला।

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