पढि़ए प्रतिदिन : एक नया गीत

Tuesday, July 20, 2010

गीत 13 : आमार नय-भुलानो एले

मेरे नयनों को मोहित करने आई
मैं हृदय खोलकर देख तुम्हें क्या पाई।

पारिजात के नीचे आस-पास
राशि-राशि झरे फूलों में
ओस से भीगी घासों में
आलता-रँगे चरण बढ़ाई
नयनों को मोहित करने आई।

धूप-छाँही तेरा आँचल
फैला है जंगल-जंगल,
फूल सभी बस तुम्हें देखकर
कहते हैं यह मन ही मन।

करेंगे हम तुम्हारा वरण,
हटा दो मुख से आभरण,
और यह जो मेघावरण
दोनों हाथों से दो सरकाई
नयनों को मोहित करने आई।

वनदेवी के द्वार-द्वार पर
उच्च शंख-ध्वनि पड़े सुनाई
गगन-वीणा के तार-तार में
तेरे ही आने की बधाई।

कहाँ बज रहे स्वर्ण नूपुर,
अरे यह तो मेरे अंतरतर में,
सभी भाव और सभी काम में
तुम सरस सुधा सरसाने आई
नयनों को मोहित करने आई।

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